बरसते हैं चिराग ए चिलमन
दर्द कम करने के खातिर
अब हृदय सूना सूना
ही सावन मुझको भाता है,
जैसे बरसते हैं सदा ही
एहसास गहराइयों में
और घुल जाती है इक
मिठास अमराइयों में,
मैं भिगा लेता हूँ नयनों को
सहारा बरसात का लेकर
छोडकर मुझको बता
भला सावन तू क्यूँ जाता है।
-भानु प्रताप सिंह रावत