मैंने सुना था पहाड़
कितने विशालकाय हो तुम
क्रम से सजा रखे जंगल
तुमसे बहती असंख्य नदियाँ
धरा पर तुम करते मंगल
फिर क्यूँ इतने हो गुमसुम
समेट लो अपनी सारी संपदा
जिसके हकदार हो तुम
मानव मन बदल गया है अब
परिस्थिति बदल रही है आज
कितने असहाय हो तुम
समझ नहीं पा रहा गिरिराज।
– भानु प्रताप सिंह रावत।