ॠतु भी बसन्त लौट आई
खिल उठे बाग सूने
अब घर भी आ जाओ परिन्दों
आओ गाँव घूमें
यहाँ चारों दिशा हरियाली
मन चेहरे हैं मुस्कान लिये
जंगल पहाड़ खेत और नदियाँ
सुखी जीवन का अरमान लिये
शहर शहर फिरता रहा क्यूँ
मोहताज दाने दाने
फ्यूंली धै लगा रही तुमको
आओ गाँव घूमें।
-भानु प्रताप सिंह रावत